Lyrics Koi Samjhaye - Ghulam Ali
कोई
समझाए
ये
क्या
रंग
है
मैख़ाने
का
आँख
साकी
की
उठे
नाम
हो
पैमाने
का।
गर्मी-ए-शमा
का
अफ़साना
सुनाने
वालों
रक्स
देखा
नहीं
तुमने
अभी
परवाने
का।
चश्म-ए-साकी
मुझे
हर
गाम
पे
याद
आती
है,
रास्ता
भूल
न
जाऊँ
कहीं
मैख़ाने
का।
अब
तो
हर
शाम
गुज़रती
है
उसी
कूचे
में
ये
नतीजा
हुआ
ना
से
तेरे
समझाने
का।
मंज़िल-ए-ग़म
से
गुज़रना
तो
है
आसाँ
′इक़बाल'
इश्क
है
नाम
ख़ुद
अपने
से
गुज़र
जाने
का।
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