Lyrics Jal Rahin Hain - Kailash Kher
जल
रही
है
चीता
साँसों
मैं
हैं
धुवा
फिर
भी
आस
मन
में
हैं
जगी
भोर
होगी
क्या
कभी
यहाँ
पूछती
यही
ये
बेड़ियाँ
देख
तो
कौन
है
ये
महिष्मति
साम्राज्याँ
सर्वोत्तम
प्रचेयम
दसो
दिशाएआतेयम
सत
इसको
करते
प्रणाम
खुशहाली
वैभवशाली
शम्रुधिया
निराली
धन्य
धन्य
है
यहाँ
प्रजा
शांति
का
ये
स्वर्ग
था
घंन
गरज
जो
किरत्क
यहाँ
डिग
डिगान्त
में
है
कहाँ
शीश
तो
यहाँ
झुका
ज़रा
यशसवीनी
है
ये
धरा
महिष्मति
की
पताका
सदा
यूँही
गगन
चूमे
अश्वदो
और
सूर्यादेव
मिलके
स्वर्ग
सिंघासन
विराजे
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