Текст песни Aaja Re Pardesi - Lata Mangeshkar
                                                मैं 
                                                तो 
                                                कब 
                                                से 
                                                खड़ी 
                                                इस 
                                                पार
 
                                    
                                
                                                ये 
                                                अखियाँ 
                                                थक 
                                                गई 
                                                पंथ 
                                                निहार
 
                                    
                                
                                                आजा 
                                                रे 
                                                परदेसी
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                तो 
                                                कब 
                                                से 
                                                खड़ी 
                                                इस 
                                                पार
 
                                    
                                
                                                ये 
                                                अखियाँ 
                                                थक 
                                                गई 
                                                पंथ 
                                                निहार
 
                                    
                                
                                                आजा 
                                                रे 
                                                परदेसी
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                दीए 
                                                की 
                                                ऐसी 
                                                बाती
 
                                    
                                
                                                जल 
                                                ना 
                                                सकी 
                                                जो 
                                                बुझ 
                                                भी 
                                                ना 
                                                पाती
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                दीए 
                                                की 
                                                ऐसी 
                                                बाती
 
                                    
                                
                                                जल 
                                                ना 
                                                सकी 
                                                जो 
                                                बुझ 
                                                भी 
                                                ना 
                                                पाती
 
                                    
                                
                                                    आ 
                                                मिल 
                                                मेरे 
                                                जीवन 
                                                साथी
 
                                    
                                
                                                ओ, 
                                                आजा 
                                                रे...
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                तो 
                                                कब 
                                                से 
                                                खड़ी 
                                                इस 
                                                पार
 
                                    
                                
                                                ये 
                                                अखियाँ 
                                                थक 
                                                गई 
                                                पंथ 
                                                निहार
 
                                    
                                
                                                आजा 
                                                रे 
                                                परदेसी
 
                                    
                                
                                                तुम 
                                                संग 
                                                जनम-जनम 
                                                के 
                                                फेरे
 
                                    
                                
                                                भूल 
                                                गए 
                                                क्यूँ 
                                                साजन 
                                                मेरे?
 
                                    
                                
                                                तुम 
                                                संग 
                                                जनम-जनम 
                                                के 
                                                फेरे
 
                                    
                                
                                                भूल 
                                                गए 
                                                क्यूँ 
                                                साजन 
                                                मेरे?
 
                                    
                                
                                                तड़पत 
                                                हूँ 
                                                मैं 
                                                साँझ-सवेरे
 
                                    
                                
                                                ओ, 
                                                आजा 
                                                रे...
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                तो 
                                                कब 
                                                से 
                                                खड़ी 
                                                इस 
                                                पार
 
                                    
                                
                                                ये 
                                                अखियाँ 
                                                थक 
                                                गई 
                                                पंथ 
                                                निहार
 
                                    
                                
                                                आजा 
                                                रे 
                                                परदेसी
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                नदिया, 
                                                फिर 
                                                भी 
                                                मैं 
                                                प्यासी
 
                                    
                                
                                                भेद 
                                                ये 
                                                गहरा, 
                                                बात 
                                                ज़रा 
                                                सी
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                नदिया, 
                                                फिर 
                                                भी 
                                                मैं 
                                                प्यासी
 
                                    
                                
                                                भेद 
                                                ये 
                                                गहरा, 
                                                बात 
                                                ज़रा 
                                                सी
 
                                    
                                
                                                बिन 
                                                तेरे 
                                                हर 
                                                साँस 
                                                उदासी
 
                                    
                                
                                                ओ, 
                                                आजा 
                                                रे...
 
                                    
                                
                                                मैं 
                                                तो 
                                                कब 
                                                से 
                                                खड़ी 
                                                इस 
                                                पार
 
                                    
                                
                                                ये 
                                                अखियाँ 
                                                थक 
                                                गई 
                                                पंथ 
                                                निहार
 
                                    
                                
                                                आजा 
                                                रे 
                                                परदेसी
 
                                    
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