Prashant Beybaar - Waqt Ka Musafir текст песни

Текст песни Waqt Ka Musafir - Prashant Beybaar




हम सब जो यूँ बढ़ रहे हैं
एक नए वक़्त में चल रहे हैं
आगे बढ़ने में माहिर हैं
कि हम सब एक मुसाफ़िर हैं
सिर्फ़ गली, शहर या राहों के नहीं
यूँ कि वक़्त की पगडंडी पे
भटक रहे हैं सैयारे से
कुछ जीते से, कुछ हारे से
घड़ी के काँटों का अलग फ़साना
बस गोल-गोल है चलते जाना
जो बीत गयीं सदियाँ वो मानो
जैसे छोड़ा शहर पुराना
एक मुसाफ़िर हार माना
फिर नया साल है नया ठिकाना
जैसे राही अपनी राह पकड़
बस शहर बदलता जाता है
वैसे ही ये शहर, 'साल' का
हर साल बदलता जाता है
इन वक़्त के शहरों में
क़स्बे महीनों के नाम हैं
कहीं सर्दी की धूप है सेकी
कहीं गर्मी में खाये आम हैं
जब इन महीने वाले क़स्बों में
कोई हफ़्ते वाली गली जाए
तो नुक्कड़ पे खड़े खड़े
हफ़्तों का हाल पूछना
कितने हफ़्ते रोके काटे,
कितने ख़्वाब मिलके बाँटे
इन सबका, हिसाब पूछना
हर गली हर नुक्कड़ पे बसा
एक दिन नाम का घर होगा
एक आँगन जैसा लम्हा होगा
चौका जैसा एक पल होगा
जैसे सारे कमरे एक जगह
आँगन में मिल जाते हैं
वैसे सब लम्हे इक दूजे के
कंधों पे टिक जाते हैं
तुम मुसाफ़िर चलते चलते
वक़्त के किसी शहर ठहर जाना
दिन नुमा घर के अंदर
किसी लम्हे में रुक जाना
और लम्हे की दीवार पर
कान लगा, दास्ताँ सब सुन जाना
सुन ना कैसे हसीन याद कोई
गीले पैर ले छप-छप करती आई थी
और कैसे कड़वी बातों ने
एक अर्थी वहीं उठाई थी
एक तंग रसोई लम्हे में
तुम्हारे हौसले गुड़गुड़ाये थे
यहीं मुझे तुम छोड़ वक़्त के
दूजे शहर चले आये थे
मगर तुम्हें तो जाना ही था,
तुम मुसाफ़िर जो थे
एक मुसाफ़िर का फ़र्ज़ है
एक शहर से दूसरे शहर जाना
जैसे आख़िरी तारीख़ बदल जाना
मुसाफ़िर हो, जाओ बिल्कुल जाओ
नए शहर का जश्न मनाओ
नए साल का जश्न मनाना
पर सुनी दास्तान लम्हों की
अगले मुसाफ़िर को सुनाना
कभी कभी जब वक़्त मिले
तो गए लम्हों की दास्तान सुनना
हम मुसाफ़िर हैं
आगे बढ़ने में माहिर हैं
हम मुसाफ़िर हैं।



Авторы: Prashant Beybaar


Prashant Beybaar - Dareecha-e-Zindagi
Альбом Dareecha-e-Zindagi
дата релиза
08-04-2022



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